Tuesday, September 8, 2015

In the Footsteps of HINDI


बहुत उम्मीद...


बहुत उम्मीद से एक एक चेहरे को परखते हैं
कोई खुशियों को सुलगा दे ग़मों की राख को छू कर


बदलते हर नए रुखसार पर बनाते हैं नए किस्से
कोई किस्सों को कहानी मे बदल दे हाथ से छू कर


ठहरते हैं नहीं , कभी, किसी की, मासूम गुस्ताखियों पर भी
मगर, बदलते इस ज़माने मे किसी से ठहराव चाहते हैं


हैं चाहते के वो मेरी परछाईं हो कहीं से तो
पर सवालों शक के बादल को कभी छंटने नहीं देते


संभाले घूमते हैं दिल को ले कर कैद पिंजरे में
बिना खोले करे आज़ाद कोई चाभी को हाथ न ले  कर


बहुत उम्मीद से एक एक चेहरे को परखते हैं
कोई खुशियों को सुलगा दे ग़मों की राख को छू कर






Signing Off
Neha Chauhan
10.56 PM (08.09.2015)